मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

अमृत कलश से छलकी बूंदो से पैदा हुयी थी गिलोय, जानिये इसके अमृत जैसे गुण

अमृत कलश से छलकी बूंदो से पैदा हुयी थी गिलोय, जानिये इसके अमृत जैसे गुण



गिलोय की बेल पूरे भारत में पाई जाती है। इसकी आयु कई वर्षों की होती है। गिलोय का वैज्ञानिक नाम है–तिनोस्पोरा कार्डीफोलिया । इसे अंग्रेजी में गुलंच कहते हैं। कन्नड़ में अमरदवल्ली, गुजराती में गालो, मराठी में गुलबेल, तेलगू में गोधुची ,तिप्प्तिगा , फारसी में गिलाई,तमिल में शिन्दिल्कोदी आदि नामों से जाना जाता है। गिलोय में ग्लुकोसाइन, गिलो इन, गिलोइनिन, गिलोस्तेराल तथा बर्बेरिन नामक एल्केलाइड पाये जाते हैं। अगर आपके घर के आस-पास नीम का पेड़ हो तो आप वहां गिलोय बो सकते हैं ।
नीम पर चढी हुई Giloy उसी का गुण अवशोषित कर लेती है ,इस कारण आयुर्वेद में वही गिलोय श्रेष्ठ मानी गई है जिसकी बेल नीम पर चढी हुई हो । मधुपर्णी, अमृता, तंत्रिका, कुण्डलिनी गुडूची आदि इसी के नाम हैं। गिलोय की बेल प्रायः कुण्डलाकार चढ़ती है। Giloy को अमृता भी कहा जाता है। यह स्वयं भी नहीं मरती है और उसे भी मरने से बचाती है, जो इसका प्रयोग करे। कहा जाता है की देव दानवों के युद्ध में अमृत कलश की बूँदें जहाँ जहाँ पडी, वहां वहां गिलोय उग गई।
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गिलोय खून की कमी दूर करें (To overcome the lack of blood)


गिलोय शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और शरीर में खून की कमी को दूर करता है। इसके लिए प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी या शहद मिलाकर सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर होती है।
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गिलोय पीलिया में फायदेमंद (Beneficial in jaundice)


गिलोय का सेवन पीलिया रोग में भी बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए गिलोय का एक चम्मच चूर्ण, काली मिर्च अथवा त्रिफला का एक चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग में लाभ होता है। या गिलोय के पत्तों को पीसकर उसका रस निकाल लें। एक चम्‍मच रस को एक गिलास मट्ठे में मिलाकर सुबह-सुबह पीने से पीलिया ठीक हो जाता है।

जलन दूर करें 


अगर आपके पैरों में जलन होती है और बहुत उपाय करने के बाद भी आपको कोई फायदा नहीं हो रहा है तो आप गिलोय का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए गिलोय के रस को नीम के पत्ते एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। प्रतिदिन 2 से 3 बार इस काढ़े का सेवन करें इससे हाथ पैरों और शरीर की जलन दूर हो जाती है।
 

कान दर्द में लाभकारी (Ear pain beneficial)


गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुना करके कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है। साथ ही गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके दोनों कानों में दिन में 2 बार डालने से कान का मैल निकल जाता है।

उल्टियां में फायदेमंद (Vomiting beneficial)


गर्मियों में कई लोगों को उल्‍टी की समस्‍या होती हैं। ऐसे लोगों के लिए भी गिलोय बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए गिलोय के रस में मिश्री या शहद मिलाकर दिन में दो बार पीने से गर्मी के कारण से आ रही उल्टी रूक जाती है।

पेट के रोगों में लाभकारी (Beneficial in diseases of the stomach)


गिलोय के रस या गिलोय के रस में शहद मिलाकर सेवन करने से पेट से संबंधित सभी रोग ठीक हो जाते है। इसके साथ ही आप गिलोय और शतावरी को साथ पीस कर एक गिलास पानी में मिलाकर पकाएं। जब उबाल कर काढ़ा आधा रह जाये तो इस काढ़े को सुबह-शाम पीयें।
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खुजली दूर भगाएं


एलर्जी, कुष्ठ तथा सभी प्रकार त्वचा विकारों में भी गिलोय का प्रयोग लाभ पहुंचाता है। आंत्रशोथ तथा कृमि रोगों में भी गिलोय लाभकारी है। यह तीनों प्रकार के दोषों का नाश भी करती है। घी के साथ यह वातदोष, मिसरी के साथ पित्तदोष तथा शहद के साथ कफ दोष का निवारण करती है। हृदय की दुर्बलता, लो ब्लड प्रेशर तथा विभिन्न रक्त विकारों में यह फायदा पहुंचती है। खुजली अक्‍सर रक्त विकार के कारण होती है। गिलोय के रस पीने से रक्त विकार दूर होकर खुजली से छुटकारा मिलता है। इसके लिए गिलोय के पत्तों को हल्दी के साथ पीसकर खुजली वाले स्थान पर लगाइए या सुबह-शाम गिलोय का रस शहद के साथ मिलाकर पीएं।

आंखों के लिए फायदेमंद (Beneficial for the eyes)


गिलोय का रस आंवले के रस के साथ मिलाकर लेना आंखों के रोगों के लिए लाभकारी होता है। इसके सेवन से आंखों के रोगों तो दूर होते ही है, साथ ही आंखों की रोशनी भी बढ़ती हैं। इसके लिए गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में पीपल का चूर्ण और शहद मिलकर सुबह-शाम सेवन करें।

बुखार में फायदेमंद (Beneficial in fever)


पुराने बुखार या 6 दिन से भी ज्यादा समय से चले आ रहे बुखार के लिए गिलोय उत्तम औषधि है। इस प्रकार के बुखार के लिए लगभग 40 ग्राम गिलोय को कुचलकर मिट्टी के बर्तन में पानी मिलाकर रात भर ढक कर रख देते हैं। सुबह इसे मसल कर छानकर रोगी को दिया जाना चाहिए। इसकी अस्सी ग्राम मात्रा दिन में तीन बार पीने से जीर्ण ज्वर नष्ट हो जाता है।

ऐसा बुखार जिसके कारणों का पता नहीं चल पा रहा हो उसका उपचार भी गिलोय द्वारा संभव है। पुररीवर्त्तक ज्वर में गिलोय की चूर्ण तथा उल्टी के साथ ज्वर होने पर गिलोय का धनसत्व शहद के साथ रोगी को दिया जाना चाहिए। गिलोय एक रसायन है जो रक्तशोधक, ओजवर्धक, हृदयरोग नाशक ,शोधनाशक और लीवर टोनिक भी है। गिलोय के रस में शहद मिलाकर लेने से बार-बार होने वाला बुखार ठीक हो जाता है। या गिलोय के रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकर लेने से तेज बुखार तथा खांसी ठीक हो जाती है। बुखार या लंबी बीमारी के बाद आई कमजोरी को दूर करने के लिए गिलोय के क्वाथ का प्रयोग किया जाना चाहिए। इसके लिए 100 ग्राम गिलोय को शहद के साथ पानी में पकाना चाहिए। सुबह−शाम इसकी 1−2 औंस मात्रा का सेवन करना चाहिए। इससे शरीर में शक्ति का संचार होता है।

मोटापा कम करें(Reduce Obesity)


गिलोय मोटापा कम करने में भी मदद करता है। मोटापा कम करने के लिए गिलोय और त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ लें। या गिलोय, हरड़, बहेड़ा, और आंवला मिला कर काढ़ा बनाकर इसमें शिलाजीत मिलाकर पकाएं और सेवन करें। इस का नियमित सेवन से मोटापा रुक जाता है।

मलेरिया, टायफायड और टीबी में गुणकारी (Malaria , typhoid and TB healthy)


बार−बार होने वाला मलेरिया, कालाजार जैसे रोगों में भी यह बहुत उपयोगी है। मलेरिया में कुनैन के दुष्प्रभावों को यह रोकती है। टायफायड जैसे ज्वर में भी यह बुखार तो खत्म करती है रोगी की शारीरिक दुर्बलता भी दूर करती है। टीबी के कारक माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलम बैसीलस जीवाणु की वृद्धि को यह रोक देती है। यह रक्त मार्ग में पहुंच कर उस जीवाणु का नाश करती है और उसकी सिस्ट बनाने की प्रक्रिया को बाधित करती है। ऐस्केनिशिया कोलाइ नामक रोगाणु जिसका आक्रमण मुख्यतः मूत्रवाही संस्थान तथा आंतों पर होता है, को यह समूल नष्ट कर देती है।

मधुमेह में लाभकारी (Beneficial in diabetes)


ग्लूकोज टोलरेंस तथा एड्रीनेलिनजन्य हाइपर ग्लाइसीमिया के उपचार में भी गिलोय आश्चर्यजनक परिणाम देती है। इसके प्रयोग से रक्त में शर्करा का स्तर नीचे आता है। मधुमेह के दौरान होने वाले विभिन्न संक्रमणों के उपचार में भी गिलोय का प्रयोग किया जाता है।
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कैंसर में लाभकारी (Beneficial in Cancer)


कैंसर की बीमारी में 6 से 8 इंच की इसकी डंडी लें इसमें wheat grass का जूस और 5-7 पत्ते तुलसी के और 4-5 पत्ते नीम के डालकर सबको कूटकर काढ़ा बना लें।

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